September 29, 2005

पहेली



जिंदगी हर पल नए सवाल खडा करती है. . . .

सवालों में हर बार इक पहेली हुआ करती है. . . .

कब तक इन पहेलियों में जकडता जाऊंगा मैं.....

कब तक अपने विचारों से लडता रहूंगा मैं.....

पता नहीं पर....

अन्‍त की तलाश में शायद खुद मैं एक पहेली बन गया हूं।

2 comments:

Anonymous said...

हिन्दी लिखना भुल गये क्या ?

अनुनाद सिंह said...

बहुत अच्छी कविता है , भाव-सौन्दर्य से परिपूर्ण ।

पर देवनागरी में लिखिये तो इसका आकर्षण और बढ जाये ।