August 05, 2005

तुम

I wrote this peom for one of my good friends whom I met in IOCL. You can easily portray of her through my poem.

विचारो की पूणॆता लिये,
मुख पर आभा समेटे,
तितली सी चंचल तुम,
फूलो सी कोमल तुम,
खुद हर पल जो मुस्‌कुराती हो,
हमको भी हँसना सिखाती हो।

तुम युही हर पल हसते रहना, जिन्‍दगी जीते रहना।
कभी इस मुस्‍कुराहठ को अपने से अलग मत करना।

मै ठहरा कवि तुमसे ये वरदान चाहता हू,
अपनी कविता के लिये ये मुस्‍कुराहठ मॉगता हू।

काश ये मुस्‍कुराहठ मुझे मिल जाऎ,
मेरी कविता भी शाश्‍वत जीवित हो जाऎ।

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