December 03, 2005

प्रियसी



होगा सवेरा चौखट पर फिर, अंगडाइयाँ जब दम तोडेंगी।
ऊषा की प्रथम किरण इस मुख पर जब अंकित होगी।

हे मेरी प्रियसी ! इन पलकों के खुलने से पहले तुम इनमे समा जाना।
मेरी धमनियों में रम जाना।

फिर मैं इन नयनों को खोलुंगा.....बस एक कृपा और कर देना।
इन नयनों से कभी निकल न जाना।
कभी निकल न जाना।

2 comments:

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

"होगा सवेरा चौखट पर फिर, अंगडाइयाँ जब दम तोडेंगी।"

ये बडी सुंदर पंक्ति है।

Pratik Pandey said...

अच्‍छी कविता है। यूं ही निरन्‍तर लिखते रहें।