प्रियसी
होगा सवेरा चौखट पर फिर, अंगडाइयाँ जब दम तोडेंगी।
ऊषा की प्रथम किरण इस मुख पर जब अंकित होगी।
हे मेरी प्रियसी ! इन पलकों के खुलने से पहले तुम इनमे समा जाना।
मेरी धमनियों में रम जाना।
फिर मैं इन नयनों को खोलुंगा.....बस एक कृपा और कर देना।
इन नयनों से कभी निकल न जाना।
कभी निकल न जाना।
2 comments:
"होगा सवेरा चौखट पर फिर, अंगडाइयाँ जब दम तोडेंगी।"
ये बडी सुंदर पंक्ति है।
अच्छी कविता है। यूं ही निरन्तर लिखते रहें।
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